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श्री कृष्ण किस जाति के थे - Shri Krishna Kis Jati Ke The

श्री कृष्ण किस जाति के थे, क्या श्री कृष्ण अहीर थे, और वासुदेव किस जाति के थे?

श्री कृष्ण किस जाति के थे – भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। श्री कृष्ण का जन्म धरती पर माता देवकी और वासुदेव के वंश में हुआ था। उनका जन्म भक्तों को पाप से मुक्ति दिलाने, भक्तों को बचाने और दुष्टों का विनाश करने तथा महाभारत के माध्यम से जीवन की शिक्षा देने के उद्देश्य से हुआ था।

उनका पूरा जीवन मानव जाति के लिए एक सबक था। बचपन में वह खेल-खेल में अपने नटखट व्यवहार से लोगों को सही और गलत का फर्क सिखाते थे। महाभारत के दौरान अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने असत्य और पाप के खिलाफ भी अपने ही लोगों के खिलाफ खड़ा होना सिखाया।

श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी कई कहानियां आपको जीवन को सरल बनाने की सीख देती हैं। कृष्ण के गुण सफलता की राह दिखाते हैं।

लेकिन क्या आप जानते है श्री कृष्ण किस जाति के थे? अगर नहीं तो आज के इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़े।

आज के इस लेख में हम आपको श्री कृष्ण किस जाति के थे, क्या श्री कृष्ण अहीर थे, और वासुदेव किस जाति के थे आदि के बारे में जानकारी देने वाले है। तो आइये जानते है –

श्री कृष्ण किस जाति के थे / कृष्ण भगवान किस जाति के थे (Shri Krishna Kis Jati Ke The)

श्री कृष्ण की जाती – यदुवंशी थी। श्री कृष्ण क्षत्रिय यदुवंशी जाती के थे।

वासुदेव किस जाति के थे (Vasudev Kis Jati Ke The In Hindi)

वासुदेव श्रीकृष्ण के पिता और श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र थे। कृष्ण के पिता वासुदेव जी की जाति क्षत्रिय यदुवंशी और गोत्र चंद्रवंशी था। यादवों के पूर्वज राजा यदु भी यदुवंशी क्षत्रिय थे। यदुवंशी अपने नाम के पीछे यादव लगाते हैं।

क्या श्री कृष्ण अहीर थे (Kya Shree Krishna Ahir The In Hindi)

हाँ, श्री कृष्ण अहीर थे। श्रीकृष्ण का जन्म यदुकुल में वसुदेव जी के पुत्र के रूप में हुआ था। वासुदेव जी एक यदुवंशी और यादव राजकुमार थे। अत्रि गोत्र का प्रत्येक व्यक्ति अहीर है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रत्येक सोमवंशी अहीर है। इस सोमवंश में यदु भी हुए तो यादव भी अहीर हैं। प्रत्येक यादव को अहीर माना जाता है। अब यादव और अहीर एक ही हैं तो एक ही कुल में जन्मे श्री कृष्ण भी अहीर हैं।

श्री कृष्ण के बारे में (Shree Krishna Ke Bare Mein)

श्री कृष्ण का जन्म रोहिण नक्षत्र में हुआ था। वह देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान थे। कंस देवकी का भाई था और अपनी बहन से बहुत प्रेम करता था। देवकी और वासुदेव के विवाह के बाद आकाशवाणी हुई कि कंस की मृत्यु देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगी।

इसके बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को कैद कर लिया और एक-एक करके उनके सातों बच्चों को मार डाला। कृष्ण के जन्म के बाद वासुदेव उन्हें गोकुल में यशोदा और नंद बाबा के घर छोड़ आए। भले ही देवकी ने कृष्ण को जन्म दिया, लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा ने किया था।

श्रीकृष्ण के गुरु सांदीपनि थे, कृष्ण ने अपने गुरु को ऐसी दक्षिणा दी थी जो शायद ही किसी गुरु को मिली हो। श्रीकृष्ण ने मृत पुत्र सांदीपनि को गुरु दक्षिणा के रूप में दे दिया था।

बहुत कम लोग जानते हैं कि श्रीकृष्ण ने देवकी की छह मृत संतानों को भी वापस बुला लिया था। श्रीकृष्ण ने देवकी-वसुदेव को उनके छह मृत बच्चों से मिलवाया था। ये छह बच्चे हिरण्यकश्यप के पोते थे और एक श्राप के तहत जी रहे थे।

श्रीकृष्ण की 16,108 पत्नियां थीं। जिनमें से आठ उनकी रानियाँ थीं। श्रीकृष्ण की आठ रानियों से 80 संतानें थीं। श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मणी को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। सभी आठों रानियों के 10-10 पुत्र थे।

सुभद्रा श्रीकृष्ण और बलराम की बहन थीं। सुभद्रा वसुदेव और रोहिणी की बेटी थीं। बलराम उसका विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे, जबकि रोहिणी और अन्य लोग ऐसा नहीं चाहते थे। इस स्थिति से बचने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुभद्रा का अपहरण करने की सलाह दी। इतना ही नहीं, श्री कृष्ण ने सुक्षाद्रा से कहा कि वह रथ की कमान संभालें ताकि यह अपहरण का मामला न लगे।

यूं तो राधा का नाम हमेशा श्रीकृष्ण के साथ जोड़ा जाता रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी भी धार्मिक ग्रंथ में राधा का जिक्र नहीं है। महाभारत या श्रीमद्भागवत गीता, किसी भी ग्रंथ में उनका नाम नहीं लिया गया है। जयदेव ने पहली बार राधा का जिक्र किया था और तभी से राधा का नाम श्रीकृष्ण के साथ जोड़ा जाने लगा।

एकलव्य जिसने गुरु दक्षिणा के रूप में अपना अंगूठा काटकर द्रोणाचार्य को दे दिया था। उनका श्री कृष्ण से भी संबंध था। एकलव्य श्री कृष्ण का चचेरा भाई था। एकलव्य वासुदेव के भाई का पुत्र था। एकलव्य जंगल में खो गया था और हिरण्यधनु को मिला था। रुक्मणी स्वयंवर के दौरान अपने पिता को बचाते समय एकलव्य की मृत्यु हो गई। एकलव्य की मृत्यु कृष्ण के हाथों हुई।

क्या आप जानते हैं कि अर्जुन अकेले व्यक्ति नहीं थे जिन्होंने सबसे पहले श्रीकृष्ण के मुख से गीता का सार सुना था। अर्जुन के साथ हनुमान जी और संजय ने भी गीता का सार सुना। जब कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, उस समय रथ की ध्वजा पर हनुमान जी मौजूद थे और संजय अपनी दिव्य दृष्टि से गीता का सार सुन रहे थे।

लेख के बारे में

आज के इस लेख में हमने आपको श्री कृष्ण किस जाति के थे, क्या श्री कृष्ण अहीर थे, और वासुदेव किस जाति के थे आदि के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख श्री कृष्ण किस जाति के थे / कृष्ण भगवान किस जाति के थे (Shri Krishna Kis Jati Ke The) अच्छा लगा है तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे।

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