Kal Ki Tithi Kya Hai In Hindi: हिंदू सौर-चंद्र-नक्षत्र पंचांग के अनुसार, महीने के 30 दिनों को चंद्र कला के आधार पर 15-15 दिनों के दो पक्षों शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या कहते हैं। पूर्णिमा, मास की पंद्रहवी और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि होती है, इसी दिन चंद्रमा आकाश में पूर्ण रूप में दिखाई देता है। वही अमावस्या, मास की तीसवी और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है, इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है। तो आइये जानते है कल की क्या तिथि है (Kal Ki Kya Tithi Hai | Kal Kya Tithi Hai) –
03 मई 2024 तिथि (03 May 2024 Tomorrow Tithi In Hindi)
कल तिथि क्या है (Kal Tithi Kya Hai In Hindi)
विक्रमी संवत् – 2081
शक सम्वत – 1944
मास – वैशाख
वार – शुक्रवार
पक्ष – कृष्ण
तिथि – दशमी (23:22 तक)
नक्षत्र – शतभिषा (23:56 तक)
करण – वणिजा (12:39 तक) और विष्टि (23:22)
योग – विष्कंभ (19:50)
सूर्योदय – 05:42
सूर्यास्त – 18:53
चंद्रमा – कुंभ
राहुकाल – 10:39 − 12:18
शुभ मुहूर्त – अभिजीत (11:51 − 12:44)
तिथि क्या है (Tithi Kya Hai In Hindi)
आम तौर पर अंग्रेजी तारीखे 24 घंटे में बदल जाती है जबकि हिंदू पंचाग के अनुसार एक तिथि उन्नीस घंटे से चौबीस घंटे तक की होती है। यानी अगर कोई तिथि चौबीस घंटे (24) की है तो कोई तिथि उन्नीस घंटे (19) की भी हो सकती है। अब यदि कोई तिथि 19 घंटे की है तो तिथि मध्यांतर में ही या मध्य रात्रि में बदल जाएगी।
30 तिथियाँ (30 Tithiya In Hindi)
पूर्णिमा (पूरनमासी, पूर्णमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)। पूर्णिमा से अमावस्या तक 15 तिथि और फिर अमावस्या से पूर्णिमा तक 30 तिथि होती है। तिथियों के नाम सोलह ही होते हैं।
तिथियों के बारे में (About Tithi In Hindi)
पूर्णिमा – पूर्णिमा के दिन सावधान रहना चाहिए। पूर्णिमा के दिन आपकी मानसिक उत्तेजना बढ़ जाती है। इस दिन घटनाएं, दुर्घटनाएं अधिक होती हैं और इस दिन व्यक्ति के विचार प्रबल होते हैं। यदि आप नेगेटिव विचारों के हैं तो पूर्णिमा के दिन वे चरम पर होंगे। इस दिन चंद्रमा अपना अत्यधिक प्रभाव छोड़ता है। यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इस दिन को व्रत का दिन बनाया है और इस दिन पवित्र रहने में ही भलाई है।
अमावस्या – अमावस्या -तिथि नकारात्मक ऊर्जाओं से जुड़ी होती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है और हर जगह सन्नाटा होता है। इस तिथि को मुख्य रूप से पितृकर्म किया जाता है। बड़े दान और उग्र कर्म किए जा सकते हैं। इस तिथि में शुभ कर्म और स्त्रियों का संग नहीं करना चाहिए। पूर्णिमा जिसे पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, इस तिथि में शिल्प और आभूषणों से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। युद्ध, विवाह, यज्ञ, जलाशय, यात्रा, शांति और पोषण करने वाले जैसे सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
प्रतिपदा तिथि – प्रतिपदा तिथि को गृह निर्माण, गृहप्रवेश, वास्तुशास्त्र, विवाह, यात्रा, प्रतिष्ठा, पौष्टिक कार्य आदि सभी शुभ कार्य किए जाते हैं। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में चंद्रमा को बली माना जाता है और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में चंद्रमा को कमजोर माना जाता है। इसलिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में विवाह, यात्रा, व्रत, प्रतिष्ठा, सीमन्त, चूड़ाकर्म, वास्तुकर्म और गृह प्रवेश आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
द्वितीया तिथि – विवाह मुहूर्त, यात्रा, आभूषण खरीदना, शिलान्यास, देश या राज्य से संबंधित कार्य, वास्तुकर्म, उपनयन आदि करना शुभ माना जाता है, लेकिन इस तिथि पर तेल लगाना वर्जित है।
तृतीया तिथि – चूड़ाकर्म, सीमन्तोनयन, अन्नप्राशन, गृह प्रवेश, विवाह, राज संबंधी कार्य, उपनयन आदि शुभ कार्य तृतीया तिथि को किए जा सकते हैं।
चतुर्थी तिथि – यह तिथि सभी प्रकार के विद्युत कार्य, शत्रुओं का नाश, अग्नि संबंधी कार्य, शस्त्र आदि के प्रयोग आदि के लिए शुभ मानी जाती है। क्रूर प्रकृति के कार्यों के लिए यह तिथि शुभ मानी जाती है।
पंचमी तिथि – पंचमी तिथि यह तिथि सभी प्रवृत्तियों के लिए उपयुक्त मानी गई है। इस तिथि में किसी को भी कर्ज देना वर्जित माना गया है।
षष्ठी तिथि – षष्ठी तिथि को युद्ध में प्रयुक्त शिल्प कार्यों का आरम्भ, वास्तु कर्म, गृह प्रवेश, नए वस्त्र धारण करने जैसे शुभ कार्य इस तिथि पर किए जा सकते हैं। इस तिथि में तैलाभ्यंग, अभ्यंग, पितृकर्म, दातुन, आवागमन, काष्ठकला आदि कार्य वर्जित हैं।
सप्तमी तिथि – विवाह मुहूर्त, संगीत संबंधी कार्य, आभूषण बनवाना और नए आभूषण धारण कर सकते हैं। यात्रा, वधू-प्रवेश, गृह-प्रवेश, राज्य संबंधी कार्य, वास्तुकर्म, चूड़ाकर्म, अन्नप्राशन, उपनयन संस्कार आदि सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
अष्टमी तिथि – लेखन कार्य, युद्ध में प्रयुक्त होने वाले कार्य, वास्तु कार्य, शिल्प संबंधी कार्य, रत्न संबंधी कार्य, मनोरंजन संबंधी कार्य, शस्त्र धारण करने से संबंधित कार्य इस तिथि में प्रारंभ किए जा सकते हैं।
नवमी तिथि – शिकार करना, लड़ाई करना, जुआ खेलना, हथियार बनाना, शराब पीना और निर्माण कार्य शुरू करना और सभी प्रकार के क्रूर कार्य इस तिथि में किए जाते हैं।
दशमी तिथि – दशमी तिथि को सरकार से जुड़े काम शुरू हो सकते हैं। हाथी, घोड़े, विवाह, संगीत, वस्त्र, आभूषण, यात्रा आदि से संबंधित कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं। इस तिथि में गृह-प्रवेश, वधु-प्रवेश, शिल्प, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, उपनयन संस्कार आदि किए जा सकते हैं।
एकादशी – व्रतों में प्रमुख व्रत नवरात्रि, पूर्णिमा, अमावस्या, प्रदोष और एकादशी हैं। इसमें भी सबसे बड़ा व्रत एकादशी का ही है। एक माह में दो एकादशी आती हैं। यानी आपको महीने में सिर्फ दो बार और साल के 365 दिनों में सिर्फ 24 बार उपवास करना होता है। एकादशी तिथि को व्रत, सभी प्रकार के धार्मिक कार्य, देवताओं का उत्सव, सभी प्रकार के उद्यापन, वास्तुकर्म, युद्ध संबंधी कर्म, शिल्प, यज्ञोपवीत, गृह आरम्भ और यात्रा संबंधी कार्य किए जा सकते हैं।
द्वादशी तिथि – इस तिथि में विवाह व अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस तिथि को तेलमर्दन, नए घर का निर्माण और नए घर में प्रवेश और यात्रा से बचना चाहिए।
योदशी तिथि – युद्ध से संबंधित कार्य, उपयोगी शस्त्रों के निर्माण से संबंधित कार्य, ध्वजा, पताका, शाही कार्य, वास्तु संबंधी कार्य, संगीत संबंधी कार्य इस दिन किए जा सकते हैं। इस दिन यात्रा, गृहप्रवेश, नए वस्त्र धारण करना और यज्ञोपवीत जैसे शुभ कार्यों का त्याग कर देना चाहिए।
चतुर्दशी तिथि – चतुर्दशी तिथि पर सभी प्रकार के क्रूर और उग्र कर्म किए जा सकते हैं। शस्त्र निर्माण आदि का प्रयोग किया जा सकता है। इस तिथि में यात्रा करना वर्जित है। चतुर्थी तिथि में किये जाने वाले कार्य इस तिथि में किये जा सकते हैं।