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गंगा पुत्र किसे कहा कहा जाता है (Ganga Putra Kise Kaha Jata Hai)

गंगा पुत्र किसे कहा कहा जाता है (Ganga Putra Kise Kaha Jata Tha)

Ganga Putra Kise Kaha Jata Hai – भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। भीष्म हस्तिनापुर के महाराजा शांतनु और देव गंगा की आठवीं संतान थे। भीष्म पितामह का मूल नाम देवव्रत था, और उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला हुआ था।

स्वर्ग में भगवान ब्रह्मा द्वारा दिए गए श्राप के कारण देवी गंगा और शांतनु को पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा। जब भीष्म का जन्म हुआ, तो उनकी माता गंगा उन्हें अपने साथ लेकर स्वर्ग लौट गईं। गंगा ने अपने इस पुत्र का नाम देवव्रत रखा। देवव्रत के जन्म के बाद गंगा को श्राप से मुक्ति मिली थी। लेकिन राजा शांतनु को अभी भी पृथ्वी पर रहना पड़ा। स्वर्ग में गंगा ने अपने पुत्र को देवताओं और ऋषियों से शिक्षा दिलाई।

गंगा पुत्र किसे कहा कहा जाता था (Ganga Putra Kise Kaha Jata Tha)

भीष्म पितामह के नाम से भी जाने जाने वाले भीष्म को गंगा का पुत्र माना जाता है। भीष्म पितामह को गंगा पुत्र कहा जाता है। उनका मूल नाम देवव्रत था, उनके पिता राजा शान्तनु उनकी पिता भक्ति से बहुत प्रसन्न थे, जिसके कारण भीष्म पितामह को अपने पिता से इच्छा मृत्यु का वरदान मिला।

भीष्म पितामह को भीष्म प्रतिज्ञा के लिए भी जाना जाता है। इसके साथ ही उन्होंने कभी विवाह भी नहीं किया, वे जीवन भर ब्रह्मचारी ही रहे। भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ दिया था, कौरव अधर्मी थे और अधर्म का साथ देने के कारण उनकी मृत्यु हुई ।

आपको बता दे की महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों के सेनापति थे। उन्होंने 10 दिनों तक युद्ध किया और अंत में मृत्यु को प्राप्त हुए।

वैसे तो भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, लेकिन पांडवों के अनुरोध पर भीष्म पितामह ने उन्हें अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया। इसके अलावा भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा कर रखी थी की वे किसी भी स्त्री, वेश्या या नपुंसक पर अस्त्र – शस्त्र नहीं उठाएंगे, जबकि शिखंडी को भीष्म पितामह के सामने लाया गया, जो की एक नपुंसक था, और इस वजह से भीष्म युद्ध हार गए और मृत्यु को प्राप्त हुए।

भीष्म पितामह के बारे में (About Bhishma Pitamah In Hindi)

भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। वह हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देव नदी गंगा की आठवीं संतान थे। उनका मूल नाम देवव्रत था। जब गंगा ने शांतनु से विवाह किया, तो उनोहने अपने पति के सामने एक शर्त रखी कि जब भी मैं कोई काम करूंगी, आप उसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। जिस दिन आप हस्तक्षेप करेंगे, मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी। विवाह के पश्चात दोनों की सात संतान हुई, जिन्हें गंगा ने एक-एक करके नदी में प्रवाहित कर दिया। जब आठवीं संतान का जन्म हुआ तो शांतनु से रहा नहीं गया।

शांतनु ने गंगा से कहा, तुम कैसी माँ हो जो अपने सभी पुत्रों को मार (वध कर) रही हो। यह सुनकर गंगा तो चली जाती है लेकिन वह अपने पुत्र देवव्रत को जीवित रखती है। गंगा 25 साल बाद अपने बेटे को शांतनु को सौंप देती है। इधर महाराज शांतनु को सत्यवती से प्रेम हो गया। लेकिन अपने बेटे को वापस पाने के बाद, वह देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज घोषित करते है। जब सत्यवती को इस बारे में पता चलता है, तो वह शांतनु से अपने पुत्र या अपने में से एक को चुनने के लिए कहती है। शांतनु अपने बेटे का सुख चुनते हैं। जिससे उसकी सत्यवती से दूरी बढ़ जाती है और वह दु:ख में जीवन व्यतीत करने लगते है।

देवव्रत अपने पिता की ऐसी दशा नहीं देख पाते और शांतनु के सारथी से सारी बात जान लेते है। जिसके बाद गंगापुत्र सत्यवती के पास जाते है और अपने पिता की खुशी मांगते हैं। लेकिन सत्यवती कहती है कि अगर मैं हस्तिनापुर में रहूंगी तो सम्रागिनी बनकर और मेरे पुत्र ही राजा बनेगा। इस शर्त पर मैं महाराज शांतनु से विवाह करूंगी। तब देवव्रत अपने पिता की खुशी के लिए प्रतिज्ञा लेते हैं कि महाराज शांतनु और माता सत्यवती के पुत्र ही राज्य के अधिकारी बनेंगे और वे स्वयं आजीवन अविवाहित रहेंगे। अपना परिवार कभी नहीं बनाएंगे। इसी भीष्म प्रतिज्ञा के कारण उनके पिता ने उनका नाम भीष्म रखा और उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान भी दिया।

FAQs For Ganga Putra Kise Kaha Jata Tha

गंगा पुत्र के नाम से कौन जाने जाते है?
गंगा पुत्र के नाम से भीष्म पितामह जाने जाते है।

भीष्म पितामह का मूल नाम क्या था?
भीष्म पितामह का मूल देवव्रत था।

गंगा की कितनी संताने थे।
गंगा की आठ संताने थे।

लेख के बारे में

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